वास्तु शास्त्र

वास्तु क्या है जीवन में सभी उर्जाओं के संतुलन को हम वास्तु कहते हैं दुनिया में हर चीज वह हर काम वास्तु से ही रिलेट होता है जीवन वास्तु के रूप में पांच तत्वों से ही शुरु होकर पंचतत्वों में ही मिल जाता है तभी इसे वास्तु पुरुष मंडल कहते हैं हमने अगर ब्रह्मांड के ज्ञान को जानना हो या उसके रहस्य को जानना हो तो हमें ब्रह्मांड में जाने की आवश्यकता नहीं वह कहते हैं ना जो ततपिंडे वही पर ब्रह्मांडे और जो ब्रह्मांडे वही तथा तत्तपिंडे, जो विराट परमात्मा है वह सूक्ष्म रूप में हम सब में विराजमान अगर हम उस सूक्ष्म रूपी परमात्मा को जानने के लिए ध्यान द्वारा या किसी और विधि द्वारा कोशिश करते हैं तो ब्रह्मांड के उस विराट परमात्मा के ज्ञान को समझ सकते हैं इस प्रकार हमारा घर भी एक संपूर्ण ब्रह्मांड के रूप में कार्य करता है पंच तत्वों का प्रभाव, उसने वास्तु पुरुष का वास सभी उर्जाओं का प्रभाव और ग्रहो का प्रभाव, इन सभी को वास्तु के 16 ज़ोन व उसमें 45 देवताओं को स्थान देने के लिए 32 जोन में बांट दिया जाता है और कौन से तत्व वह कौन सी ऊर्जा के असंतुलित होने से हमारे जीवन में उसका क्या प्रभाव रहता है यह भी हम आसानी से जान सकते हैं जीवन में आगे बढ़ने के लिए संतुलन कैसे बिठाना है यह भी वेदांग जीओ वास्तु अनालॉजी द्वारा आसानी से जान सकते है।

क्या वास्तु शास्त्र सिर्फ किस दिशा में क्या करना चाहिए और किस दिशा में कौनसी वस्तु रखनी चाहिए , इतने साधारण ज्ञान से सिमित है ?
माध्यमिक कक्षा में पढ़ई करने वाला बच्चा भी अगर आजकल की वास्तु पर लिखी गयी किताबे पढ़ेगा तो बताएगा की कौनसी दिशा में क्या करना चाहिए इत्यादि ......
जब हम मूल ग्रन्थ को पढ़ने की कोशिश करते है तब हमे वास्तु का असली मतलब समझ ने लगता है| " वास्तु शास्त्र " यह नाम इस कला को इस मध्यकाल में मिला है | इस कला का मूल नाम *"स्थापत्य कला"* है जिसका उगम स्थापत्य वेद से होता है | जो भी इस कला को शुद्ध वैद्न्यानिक रूप से अवगत करता है उसे स्थापति कहते है | निसर्ग के व्याकरण का पालन करते हुए और निसर्ग की अत्यंत प्रभावशाली ऊर्जा को आपने अंतर्मन की ऊर्जा के साथ संयुक्त बनाने हेतु अपने निवास की लम्बाई , चौड़ाई तथा ऊंचाई कितनी होनी चाहिए इसके बारे में स्थापत्य वेद हमे मार्गदर्शन करता है | *हमने शिक्षण काल में पढ़ा है की ऊर्जा के कई रूप होते है जिसका उपयोग करने के लिए उसे प्रमाणबद्ध करना अत्यंत आवशक होता है* |
मान लो हमारे घर में बिजलीघर से जो बिजली आती है अगर वह *२४० वोल्ट* की बजाय काम या ज्यादा आये तो हमारे घर के उपकरण जैसे टीवी , फ्रीज़, पानी की मोटर या बल्ब चाहे किसी भी रंग का हो , ख़राब हो जायेंगे |इंसान भी निसर्ग ने निर्माण किया हुआ उपकरण है और ब्रह्माण्ड तथा धरती उसको लगने वाली ऊर्जा के स्त्रोत है | इन दोनों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को सही मात्रा में नियंत्रित करने का कार्य *शास्त्रीय आयदि सुत्र* शुद्ध प्रमाण में निर्मित वास्तु करता है |
जैसे मनुष्य निर्मित विद्युत उपकरणों को सही मात्रा में बिजली की ऊर्जा प्राप्त हो तो वह आपने कार्य ठीक से करते है और ज्यादा समय तक कार्य करते है | वैसे ही मनुष्य की सेहत और कार्य उसको वास्तु से मिलनेवाली ऊर्जा पर निर्भर करता है |
अगर ऊर्जा सही मात्रा में प्रमाणबद्ध है तो सब मंगल होता है , अन्यथा...........